...

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वो चले जब सांझ बनकर
वो चले जब सांझ बनकर।।

लहलहाती डालियां, जैसे फसल की बालियां
जा रहा यूं गात सनता, स्वाति की बूंदें गिराती।
छीन लेती है नजारे, पुष्प फीके दीखते फिर
दृश्य आया है उभर ज्यों, कल्पनाओं से उतरकर।
वो चले जब सांझ बनकर।।

इस जगत में कौन होगा, जो मेरा हृदय गला दे
और पत्थर से मनुज में, सहज चिंगारी लगा दे।
प्रतीत सागर क्षीण होता, जैसे डुबा करके गयी
दीखते खंडित हुआ मन, लोल लोचन औ जिगर।
वो चले जब सांझ बनकर।।

इस प्रहर से उस प्रहर तक, स्वप्न के गहरे तहे तक
प्रत्येक क्षण बसती रही, स्मृति में उसकी झलक।।
अट्टहास करने लगीं हैं, प्रीति में कौतुक निशाएं
टूटते तारे दिखें न, न देखता कुछ भी भ्रमर।
वो चली जब सांझ बनकर।।

#प्रेम #जीवन #कविता #
© अवनि..✍️✨