बंधन... मोह का..!!
विदित है, मुझे की यह जगत मिथ्या है
कहानी मेरी बस इतनी की...
मिट्टी से शुरू और मिट्टी में अंत है
सांसों की सरगम के सहारे सफर करती हूं मैं
भान यह भी है कि. इसमें ना ही मेरी चाह
और ना ही मेरा हक है ..!!
कालचक्र का वो पहिया आगे मेरे चलता है
सांसों की मेरी डोर थामे है;जब धीरे से भी झटकता है
आत्मा का यह मेल जगत से तब टूट मेरा जाना है
पर सब जानकर भी सवाल रहा..
फिर मोह में भटकता क्यूं मेरा मन है...!!?
अकेलेपन से भी यह मेरा नाता पुराना है
कहने को अपने है कई ,पर यहां साथ ना किसी ने जाना है ..
जिंदगी में रखा वह...
कहानी मेरी बस इतनी की...
मिट्टी से शुरू और मिट्टी में अंत है
सांसों की सरगम के सहारे सफर करती हूं मैं
भान यह भी है कि. इसमें ना ही मेरी चाह
और ना ही मेरा हक है ..!!
कालचक्र का वो पहिया आगे मेरे चलता है
सांसों की मेरी डोर थामे है;जब धीरे से भी झटकता है
आत्मा का यह मेल जगत से तब टूट मेरा जाना है
पर सब जानकर भी सवाल रहा..
फिर मोह में भटकता क्यूं मेरा मन है...!!?
अकेलेपन से भी यह मेरा नाता पुराना है
कहने को अपने है कई ,पर यहां साथ ना किसी ने जाना है ..
जिंदगी में रखा वह...