#दूर
दूर फिरंगी बन कर घूम रहा कोई,
मन बंजारा कहता है ढूंढ रहा कोई;
वृक्ष विशाल प्रीत विहार कर रहा कोई,
व्याकुल नयनों से निहार रहा कोई
कोई है जो व्याधियों में तटस्थ बना है
कोई है जो क्षणिकाओं में अस्त बना है
हुआ है कोई क्षीण वियोग व क्षोभ में
सांसारिक बातों से उठकर कोई बुद्ध बना है
हर व्यक्ति की है यहां कथा अलग, व्यथा अलग
कुछ जुड़ गए बेतरह, कुछ हो गए विलग
तनिक डाल नज़र इतिहास पटल पर
यूं ही सदा से चलता रहा है ये जग
© Reema_arora
मन बंजारा कहता है ढूंढ रहा कोई;
वृक्ष विशाल प्रीत विहार कर रहा कोई,
व्याकुल नयनों से निहार रहा कोई
कोई है जो व्याधियों में तटस्थ बना है
कोई है जो क्षणिकाओं में अस्त बना है
हुआ है कोई क्षीण वियोग व क्षोभ में
सांसारिक बातों से उठकर कोई बुद्ध बना है
हर व्यक्ति की है यहां कथा अलग, व्यथा अलग
कुछ जुड़ गए बेतरह, कुछ हो गए विलग
तनिक डाल नज़र इतिहास पटल पर
यूं ही सदा से चलता रहा है ये जग
© Reema_arora