जैसे तुमने चाहा मुझको।
जिस सांचे में तुमने चाहा,
उस सांचे में ढल गई,
जैसा रूप तुमने चाहा,
उस रूप में आ गई।
कच्ची कली आई थी मैं,
पत्थर दिल में बन गई।
अब तुम्हें मेरे होने ना होने से फर्क नहीं पड़ता है,
और अब
जब-जब बातें तुम कहते हो मुझसे मुझे फर्क नहीं पड़ता है।
दिल...
उस सांचे में ढल गई,
जैसा रूप तुमने चाहा,
उस रूप में आ गई।
कच्ची कली आई थी मैं,
पत्थर दिल में बन गई।
अब तुम्हें मेरे होने ना होने से फर्क नहीं पड़ता है,
और अब
जब-जब बातें तुम कहते हो मुझसे मुझे फर्क नहीं पड़ता है।
दिल...