...

6 views

जैसे तुमने चाहा मुझको।
जिस सांचे में तुमने चाहा,
उस सांचे में ढल गई,

जैसा रूप तुमने चाहा,
उस रूप में आ गई।

कच्ची कली आई थी मैं,
पत्थर दिल में बन गई।

अब तुम्हें मेरे होने ना होने से फर्क नहीं पड़ता है,
और अब
जब-जब बातें तुम कहते हो मुझसे मुझे फर्क नहीं पड़ता है।

दिल तुमने मेरा मार दिया,
ख्वाइश सारी खत्म हो गई,
सांसे चल रही है बस,
अब
कर रही उस दिन का इंतजार,
जिस दिन निकलेंगे मेरे प्राण।

पिता का घर में छोड़ कर आई,
फिर भी ना किया तुमने सम्मान।

सब कुछ अपना गवा दिया,
तुम्हारी खातिर अस्तित्व भी खो दिया,
किया नहीं तुमने सम्मान,
दिया नहीं तुमने वो मान,
जिसकी थी मैं हकदार।

बस हर दिन अब सिस्क सिस्क,
मैं रोती हूं
और
बस रोती हूं।

© Dolphin 🐬 (Prachi Goyal)