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संविधान
ना कोई संविधान को मान रहा है और ना ही कोई एक्सेप्ट कर रहा है
और बहुत ऐसे हैं कि जो संविधान के बारे में कुछ मालूम ही नहीं, और जिसे संविधान मालूम है वो उसका सही उपयोग नहीं करता।
ना कोई कानून का सही पालन कर रहा है और ना कोई नागरिक अपने समाज में सही से रह रहा है,
अब तो न्याय भी सही से नहीं हो रहा है, अक्सर बेगुनाह ही सूली पर चढ़ा है, अभी कोई भी स्वतंत्र से नहीं जी रहा है सब किसी न किसी चीज से या किसी न किसी इंसान से गुलाम है,
लगता है संविधान को कोरे कागज पर लिख कर छोड़ दिया गया है जैसे मंदिर में भगवान की प्रतिमा बना कर छोड़ देते हैं उनकी पूजा अर्चना तो करते हैं लेकिन उनकी दिए हुए बातों पर नहीं चलते,
सब गुलाम है यहां ,
कोई अपने गरीबी से गुलाम है कोई अपने रिश्तो से तो कोई अपने मालिक से,
तो कोई लड़की अपनी जाति से गुलाम है
सब गुलाम है यहां कोई स्वतंत्र नहीं।
❤️❤️
© Amrit yadav
और बहुत ऐसे हैं कि जो संविधान के बारे में कुछ मालूम ही नहीं, और जिसे संविधान मालूम है वो उसका सही उपयोग नहीं करता।
ना कोई कानून का सही पालन कर रहा है और ना कोई नागरिक अपने समाज में सही से रह रहा है,
अब तो न्याय भी सही से नहीं हो रहा है, अक्सर बेगुनाह ही सूली पर चढ़ा है, अभी कोई भी स्वतंत्र से नहीं जी रहा है सब किसी न किसी चीज से या किसी न किसी इंसान से गुलाम है,
लगता है संविधान को कोरे कागज पर लिख कर छोड़ दिया गया है जैसे मंदिर में भगवान की प्रतिमा बना कर छोड़ देते हैं उनकी पूजा अर्चना तो करते हैं लेकिन उनकी दिए हुए बातों पर नहीं चलते,
सब गुलाम है यहां ,
कोई अपने गरीबी से गुलाम है कोई अपने रिश्तो से तो कोई अपने मालिक से,
तो कोई लड़की अपनी जाति से गुलाम है
सब गुलाम है यहां कोई स्वतंत्र नहीं।
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