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ज़िंदगी और कुछ भी नहीं
रोज़ नई आस लगा कर रखती है,
बरबाद सी ये जिंदगी..
ताल्लुक नहीं हकीकत से सपनों का,
फिर भी मुझे से रिश्ता बना कर रखती है ये ज़िंदगी
मैं कल तक था कुछ नहीं,
प्यारी थी ये ज़िंदगी,
आज शक्सियत ही मेरी मुझसे सवाल करती है
"कितनी सँवार ली है ये जिंदगी..?"
रोज़ जान छीनती है ये ज़िंदगी,
मगर मरने देती नहीं ये जिंदगी..
आँखें खुली हों, चाहे बंद..,
बस अँधेरा ही दिखाती है ये ज़िंदगी..!
© deep_k_lafz
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