गज़ल
बादल बरसा घनघोर मगर,
मन की सुखी जमीं थी..!
मुस्कान ओढ़े चेहरे के भीतर,
दिल थोड़े जख्मी थे.....!
यूँ तो थे महफ़िल...
मन की सुखी जमीं थी..!
मुस्कान ओढ़े चेहरे के भीतर,
दिल थोड़े जख्मी थे.....!
यूँ तो थे महफ़िल...