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पैसे की नींद
काश नींद को थोड़ी तेह्ज़ीब आती-कहां आना है उसे ये फैसला बिछौने की कीमत बताती- टूटे घर बाद मे पहले महलों का चक्कर लगाती- जिद्द छोड खप्परॉ से पहले महलो को मीठे सपने सुलाती-ऐसा होता शायद अगर नींद को भी पैसो की दरकार होती -
© mayank