दिन ढल गया
लो फिर इक दिन ढल गया
सूर्य अपने छोर को चल गया
सांझ की लालिमा की गोद में
चंद्र जैसे भानु के विरोध में
चौदहवीं के रूप पर कितना है इठला रहा
रौशनी उसी से ले जबकि है फैला रहा
मैं भी देख उसको थोड़ा सा सुस्ता चला
ले विराम आज का काम से रुकता चला
के सोचा कल पर बाकि कार्य छोड़ दूं
आज ध्यान सारा चांदनी पर मोड़ दूं
मेज़ पर ही मेरा हर दिवस है बीतता
नित नवीन युद्ध में वक्त ही है...
सूर्य अपने छोर को चल गया
सांझ की लालिमा की गोद में
चंद्र जैसे भानु के विरोध में
चौदहवीं के रूप पर कितना है इठला रहा
रौशनी उसी से ले जबकि है फैला रहा
मैं भी देख उसको थोड़ा सा सुस्ता चला
ले विराम आज का काम से रुकता चला
के सोचा कल पर बाकि कार्य छोड़ दूं
आज ध्यान सारा चांदनी पर मोड़ दूं
मेज़ पर ही मेरा हर दिवस है बीतता
नित नवीन युद्ध में वक्त ही है...