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मेरी पहचान
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मेरी पहचान
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कौन सी है सिर्फ मेरी पहचान
कहां रखा है सिर्फ मेरा सम्मान
जब मेरे पैदा होने पर........
पापा ने दिया था मुझे एक नाम
पर अब वो दिखता ही नहीं
क्या अब खो गया है वो मुझसे
शायद रखा है रोटी के डब्बे में
या मेरी अलमारी में
या फिर कहीं फेंका हो
घर के किसी छोटे से कोने में
घर..............
मैं तो सोचती थी कि
एक ही घर है मेरा
पर अब ये ख्याल है कि
कौन सा शहर है मेरा
अगर मैं रहती हूं अपने घर में
सब कहते हैं इसका घर नहीं है क्या?
सिर्फ नाम का जो वो घर है मेरा
वहां का न वक़्त और न पहर है मेरा
पता नहीं कौन सी है सिर्फ मेरी पहचान
बेटी, बहन, भतीजी, पत्नी
बहू, ननद या भाभी - जान..........
एक साथ इतने किरदार मिले हैं
फिर भी कभी तो आता होगा ये सवाल
आखिर मेरे हिस्से ही क्यों है इतना शोर - बवाल
अक्सर लोगों को कहते हुए सुना है मैंने
कि लड़की ही तो है........
शायद सच कहते हैं वो
जिसका न घर और न शहर
न वक़्त और न पहर
जिसकी है दो दो घर से है पहचान
फिर भी क्यों है वो खुद से अनजान
वो एक लड़की ही तो है........
जो झेल सकती है सब
फिर चाहे वो रक्त - स्राव,
गुस्सा,खामोशी या मानसिक तनाव
गर्भावस्था में बढ़ता वजन हो
या फिर दर्द से टूटा हुआ तन हो
शायद उस हिस्से में ढूंढ पाती है वो पहचान
जिसमें बसी होती है उसकी जान
सब कुछ होता है उसके पास फिर भी
क्यों हो जाती हैं ये बातें गुमनाम
कभी तो आता होगा ये खयाल फिर भी
कि कहां छुपा है सिर्फ मेरा नाम

© Rhycha