...

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बेटी
एक कहानी मेरी भी
कैसे कहूं शब्दों में
एक कहानी मेरी भी

नन्हीं सी चिड़िया हूं शायद
मत सोचो मेरे बारे में ...
कौन हूं ,कौन हूं
पता नही मुझे भी ।

तुम नहीं कर सकती
इस बेड़ी ने पंखों को जकड़ लिया
आकाश भर की उड़ान चाहती हूं
पर क्यूं उड़ने दे पंख जो जकड़ रखे।

शिक्षा से वंचित रखा
ताली - थाली बजी नहीं
क्यूं बेड़ियों ने जकड़ा है
यह बात अच्छी नही।

गर्भ से बाहर क्यों आने दे?
बेटी तो इनका बोझ है
कैसे कहूं इस दुनियां से
कितनी बुरी यह सोच है ।

अधिकार क्यों बराबर मिले ?
लड़की जो मैं ठहरी
पर यह भी तो सत्य है
दुर्गा , लक्ष्मी व सरस्वती नारी है।

बेटी को भी औसर मिले
मैं भी खुशियों की हकदार हुं
मुझे भी अपना लो ....
मैं भी खुशियों की बहार हूं।
अशोक कुमार