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जिंदगी खुद एक दुर्घटना है।
जिंदगी खुद एक दुर्घटना है,
बाकि जो हो रहा है, वो तो महज घटना है।

जन्म भी कहाँ आसान था,
तुम भी पीड़ा में थे और माँ भी,
क्या खून-पसीना तब नहीं बहा था?
अब तो महज खून-पसीने की बात होती है,
जन्म के वक्त जितनी कहाँ काली रात होती है।

जब धरती पर आये थे,
तब कितने दर्द में होते थे तुम,
दर्द पेट में है या सीने में,
कहाँ बता पाते थे तुम। 
नाजुक मुठिया बंद होती थी,
नाजुक पैर हवा में उठे होते थे,
आँखे बंद और थोथला मुहं खुला होता था,
किलकारियों का शोर क्या बला होता था,
तुम्हे ना पता था भगवान की भक्ति का,
तुम्हे ना पता था पीड़ा की अभिव्यक्ति का,
फिर भी तुमने सब पार किया था, 
फिर भी तुमने ये जीवन स्वीकार किया था,

अब जुबान है तुम्हारे पास,
तुम्हारा भगवान है तुम्हारे पास,
हाँ तुमने वैसे रोना छोड़ दिया है,
पर क्या ये दुःख, उस दुःख से बड़ा है
अब जब मुहं में तू एक जुबान लिए खड़ा है,
 फिर क्यों तू अब सोचे कि तू अकेला पड़ा है?


जब था तूने चलना सिखा,
हर बार था तू गिरा,
कोई देख कर ख़ुशी में हंसता था,
कोई उड़ा मजाक हंसता था,
तुझे लगा था हर जगह घाव,
घुटनों की चमड़ी छिली थी,
सर-माथे पर बना था बड़ा उभार,
पर आखिर तूने ही दिया था रस्तो में पैरो का आकार।

अब भी तो तू वैसे ही हर बार गिरता है,
 लक्ष्य की और चलने की कोशिश में 
हर पल तिल-तिल मरता है,
अब भी कुछ खुश होते है सघर्ष तेरा देख कर,
अब भी कुछ मजाक बनाते है तरस तेरा देख कर,
  पर अब जब करना है तुझे तेरे सपनों को साकार,
फिर से क्या नहीं दे पाएगा तू रस्तो में पैरों को आकार? 
 

जब तूने पढ़ना लिखना सिखा था,
क्या वो तुम्हे याद है,
 जब घरवालों ने स्कूल के लिए घसीटा था,
हर अक्षर पर मास्टर ने पिटा था।
पर जब अक्षर ज्ञान आता गया, 
फिर तेरा मन रोके से ना रुका था।
जब हर बार तूने इम्तहान दिया था,
जिससे लगता था डर,
हर उस कठिनाई को तूने पार किया था।

अब जब तुझे पढ़ना आता है,
तू हर ख़्वाब तक को लिख जाता है।
फिर क्यों मन में ‘मुझसे नहीं होगा’ का डर बसाए,
इतना कुछ तो तूने कर दिया है,
फिर क्यों तू अब बस कुछ से घबराए।
अब जब तू नहीं है, मन से विवश,
क्यों ना तू दहाड़ दे कि मन है मेरा,
और मेरा मन पर है पूरा वश।

अब ऐसे ही तू हर दुर्घटना को पार कर,
जब आ पहुंचे हो जवानी के मुकाम पर,
जहाँ बल, बुध्दी की कमी नहीं है ,
इच्छाएँ है हजारों, क्योंकि 
इच्छाशक्ति अभी जमी नहीं है।

जब बचपने से ही जिंदगी की हर दुर्घटना को है झेला,
हर बेजुबान दर्द पर तू मुस्करा कर है खेला,
क्या अब तू महज घटनाओ से घबरता है?
दिखा दे सबको कि तू कैसे इन्हें पार कर जाता है।

अब जान चूका तू  सब है, 
फिर क्यों हालत पर हर रोज सर पटकना है।

तुझे किससे दूर हटना है,
जिन्दगी तो खुद है एक दुर्घटना है,
बाकि जो हो रहा है वो तो महज घटना है।

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