कुछ अधूरा छोड़ दिया.......!
लिखते-लिखते कुछ अल्फाज अधूरे छोड़ जाती हूँ,
शब्दों की कशमकस मे हमेशा ख़ुद को उलझा हुआ पाती हूँ,
दूर तलक मानो कोई चिराग़ की आश हो न हो,
पर मैं अपने इर्द गिर्द रोशनी की हर झलक पाती हूँ...
.......ऐसा नहीं कि मुझे शौक है या मुझे भाता हो...
शब्दों की कशमकस मे हमेशा ख़ुद को उलझा हुआ पाती हूँ,
दूर तलक मानो कोई चिराग़ की आश हो न हो,
पर मैं अपने इर्द गिर्द रोशनी की हर झलक पाती हूँ...
.......ऐसा नहीं कि मुझे शौक है या मुझे भाता हो...