...

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कुछ अधूरा छोड़ दिया.......!
लिखते-लिखते कुछ अल्फाज अधूरे छोड़ जाती हूँ,
शब्दों की कशमकस मे हमेशा ख़ुद को उलझा हुआ पाती हूँ,
दूर तलक मानो कोई चिराग़ की आश हो न हो,
पर मैं अपने इर्द गिर्द रोशनी की हर झलक पाती हूँ...
.......ऐसा नहीं कि मुझे शौक है या मुझे भाता हो अल्फाजों को अधूरा छोड़ना, शब्दों में हमेशा उलझना या फिर बिन चिराग़ों के रोशनी का अनुभव करना!
...पर कभी-कभी कुछ जज्बादतों को अल्फाज न मिलना ही बेहतर होता है,
लोगों की अंसुलझी बातों में उलझने की बजाय शब्दों की कश्मकस मे उलझना बेहतर है,और
हम हमेशा रोशनी की ही क्यों तमन्ना करें.....सुना है कभी-कभी अंधेरों से भी मोहब्बत अच्छी होती है।

© sarika jhariya