हर रात
गुनगुनाता हुआ दिन ग़ुजरा और फ़िर से ये रात आई
फ़िर उसी शख्स की यादे और बातो में वही बात आई
भूलने को जिसे करते रहे हर वक़्त ही मसक्कत
फ़िर भी ज़हन में फकत ओ फकत उसी की याद आई
गये थे बहलाने दिल को दोस्तों की थी ज़हा अंजुमन
भीड़ में थे ज़िस्म से फकत दिल में थी सिर्फ़ तन्हाई
बस जाता हैं कोई दिल में बशर हा इस ही कदर
बर्दाश्त होती ही नहीं दिल को उसकी रूसवाई
हर रात यही समझा के बहला देते हैं टूटे दिल को
आज नहीं तो कल लौटेंगी इश्क़ की मीठी पुरवाई
© V K Jain
फ़िर उसी शख्स की यादे और बातो में वही बात आई
भूलने को जिसे करते रहे हर वक़्त ही मसक्कत
फ़िर भी ज़हन में फकत ओ फकत उसी की याद आई
गये थे बहलाने दिल को दोस्तों की थी ज़हा अंजुमन
भीड़ में थे ज़िस्म से फकत दिल में थी सिर्फ़ तन्हाई
बस जाता हैं कोई दिल में बशर हा इस ही कदर
बर्दाश्त होती ही नहीं दिल को उसकी रूसवाई
हर रात यही समझा के बहला देते हैं टूटे दिल को
आज नहीं तो कल लौटेंगी इश्क़ की मीठी पुरवाई
© V K Jain