...

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क्या लिखूं क्या नहीं
क्या लिखूं क्या नहीं समझ नहीं आ रहा ?
अगर मैं लिखती हूं समाज के कुप्रथाओं के बारे में तो उन सुप्रथाओं का क्या
जो हमारे समाज में जन्मों से प्रचलित हैं अगर मैं लिखती हूं जीवन के विडंबनाओं के बारे में
तो उन प्रशंसाओं का क्या जो मुझे मेरे जीवन में मिली हैं
क्या लिखूं क्या नहीं समझ नहीं आ रहा ?
अगर मैं लिखती हूं देश की विभिन्नताओं के बारे में
तो कैसे भूल जाऊं देश की एकता के बारे में
अगर मैं लिखती हूं समाज के भेद-भाव के बारे में
तो मैं कैसे भूल जाऊं समाज की समानताओं के बारे में
क्या लिखूं क्या नहीं समझ नहीं आ रहा है?
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