चांद
आज खफ़ा था चांद हमसे
न जाने क्यों रूठा था,
या तो की थी हमने कोई नादानी
या दिल उसका टूटा था,
पूछा जो हमने उससे ये सवाल
तो गुस्से से चीखा वो,
सायद कर दी थी हमने ही कोई नादानी
वरना यूं तो कभी न रूठा था वो,
कहने लगा,
सुनना ज़रा,
एक खिड़की से झगड़ा है मेरा
रोज तोहीन मेरी है करता वो,
वो ताकता है तुझको
तुझको ही चांद बताता वो,
नूर तेरे चेहरे का...
न जाने क्यों रूठा था,
या तो की थी हमने कोई नादानी
या दिल उसका टूटा था,
पूछा जो हमने उससे ये सवाल
तो गुस्से से चीखा वो,
सायद कर दी थी हमने ही कोई नादानी
वरना यूं तो कभी न रूठा था वो,
कहने लगा,
सुनना ज़रा,
एक खिड़की से झगड़ा है मेरा
रोज तोहीन मेरी है करता वो,
वो ताकता है तुझको
तुझको ही चांद बताता वो,
नूर तेरे चेहरे का...