...

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बमतुल बुखारा
वो बमतुल बुखारा की आख़िरी आवाज़ थी,
या वो एक शपथ पूरी होने की निशानी थी,
वो राखी थी उन हाथों की या कहूं,
वो अनमिट एक कहानी थी ।
अभी जवां थी बुखारा जब उन्होंने उसको पुकारा,
हर एक के बदले दस–दस को गिन–गिन के उसने मारा,
पावन हो गई वो चिड़िया जिसने अंतिम अवाज सुनी,
पर जब तक थी हाथों में बमतुल कभी नहीं वो हारा।
आज़ादी की वो प्रथम बोल आज़ाद की अंतिम सांस थी,
आने वाले कल की वो गोरों के लिए राज़ थी ,
कहीं वो हंसी तो नहीं उनके कल और हमारे आज की,
वो बमतुल बुखारा की आख़िरी आवाज़ थी।

ध्रुव

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