...

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में यूंही सफर करती रही .....
विचारों के यातायात यूंही मैं अपने कल्पना के शहर में सफर करती रही ।
समय बीतता गया , और मैं अपने ही शहर में भटकती रही ।
कुछ दूर जाने ध्यान आया कि मैं इस उदेश्यहीन सफर को यूंही तय करती रही ।
मेरे विचारों की गाड़ी आगे बढ़ती रही मैं बस आते जाते दृश्यों को एक टक निहारती रही ।

में यूंही सफर करती रही .......
© सदेव

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