...

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इस युग में
इस युग में सही गलत का अन्तर करना हो गया मुश्किल,
हे ईश्वर काश मुझे दिव्यदृष्टि जाती जल्दी मिल!

देख झूठ के साथ है भीड़ भारी,
यह तमाशा देख चली गई मेरी सारी समझदारी!

नित नई कहानियाँ सुन बुद्धि भी चकरा गई,
बोली मान ले तू कि, अब मैं हिमालय गई!

लगा ये सच कह रही है भाई,
यहाँ भेड चाल तभी दे रही है दिखाई!

यहाँ तो यह आलम है रघुराई,
ज्ञान की हर कोई दे रहे हैं दुहाई!

पर कर्म में इसे किसी से न उतारी गई,
देख लो सबकी नियत कितनी बेकाबू हो गई!

स्वप्न देखा ऐसा कि दुनिया झुठ कपट से दर किनारा कर गई,
अब सत्य ही निकल रहा मुख से, है बेचारा न कोई!
Ruchi jain