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बैठो
बैठो हमारे रूबरू,
करनी है तुमसे गुफ्तगू
अरसाँ हुआ अब तो पोछ ले एक दूसरे के आँसू,
मिल सुलझाते उलझनों को जो हो रही बैकाबू,
पेशानी पे उभरी लकीरों को मुस्कुराहट से भर दू्,
बेज़ार है हरेक अपने दामन की ओर मुखातिब हो तू
दे रह इतना समय शोशल मिडिया को तू,
अब इंसान और इंसानियत से हो रूबरू
करनी है तुमसे गुफ्तगू
अरसाँ हुआ अब तो पोछ ले एक दूसरे के आँसू,
मिल सुलझाते उलझनों को जो हो रही बैकाबू,
पेशानी पे उभरी लकीरों को मुस्कुराहट से भर दू्,
बेज़ार है हरेक अपने दामन की ओर मुखातिब हो तू
दे रह इतना समय शोशल मिडिया को तू,
अब इंसान और इंसानियत से हो रूबरू
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