मैं कहीं नहीं
इतना खो गया हु मैं
की मैं अपनो में भी नहीं
ना ही मैं हकीकत में
ना हु मैं सपनों में कही
एक भवर सी घुमती है दुनिया
बह रहा हु मैं भी उसमे कही
भीड़ का बन चुका हु कुछ हिस्सा इस तरह
अब कुछ अलग रहा नहीं
अब माँ...
की मैं अपनो में भी नहीं
ना ही मैं हकीकत में
ना हु मैं सपनों में कही
एक भवर सी घुमती है दुनिया
बह रहा हु मैं भी उसमे कही
भीड़ का बन चुका हु कुछ हिस्सा इस तरह
अब कुछ अलग रहा नहीं
अब माँ...