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वसंत
श्रृंगार करूं क्या
या रहने दूं
वसंत आया है
पुलकित सा हृदय है
खुशी से दमकते चेहरे को
क्या कोई और श्रृंगार चाहिए
पंछियों ने शुरू किया
गुनगुनाना नगमें
मन करता है
उनके सुर से सुर मिलाऊं
मैं भी कुछ गाऊँ
कुछ गुनगुनाऊं
बचपन में तो था हर पल खास
क्या शिशिर ऋतु,क्या मधुमास
यौवन थोड़ा मस्त है
वसंत आता है जब
हो जाता उत्साहित
उम्र ढले तो ये उल्लास कम होगा क्या?
क्यों सोचूं उस बारे में इतना अभी से
इस पल को क्यों न अभी
जी लूं पूरी तरह।
© Geeta Dhulia
या रहने दूं
वसंत आया है
पुलकित सा हृदय है
खुशी से दमकते चेहरे को
क्या कोई और श्रृंगार चाहिए
पंछियों ने शुरू किया
गुनगुनाना नगमें
मन करता है
उनके सुर से सुर मिलाऊं
मैं भी कुछ गाऊँ
कुछ गुनगुनाऊं
बचपन में तो था हर पल खास
क्या शिशिर ऋतु,क्या मधुमास
यौवन थोड़ा मस्त है
वसंत आता है जब
हो जाता उत्साहित
उम्र ढले तो ये उल्लास कम होगा क्या?
क्यों सोचूं उस बारे में इतना अभी से
इस पल को क्यों न अभी
जी लूं पूरी तरह।
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