...

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विवाहेत्तर प्रेम
शादी से पहले लगता है
शादी के बाद कोई भला कैसे
कर लेता है प्रेम
पति या पत्नी को छोड़कर
जाने कैसे लोग होंगे वो?
कैसा चरित्र है उनका


सिर्फ अपनी शादी के बाद ही
समझ आता है मन को
प्रेम सिंदूर से नहीं बंधा
ना सात फेरों से
प्रेम का होना ना होना चरित्र का नहीं
जीवन का प्रमाण है

प्रेम होता है एक वट वृक्ष
पनपता है लेकिन
अपने ही मन से
प्रतिकूल परिस्थितियों में ही बहुधा

© Poeत्रीباز