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रात्रि वंदना
हे रात्रि, निशी दिन तुम जग में तमस हर उसे स्वच्छ होने का अवसर देती हो,
अपनी शीतल छाया में मुझ पतित को भी पावन कर देना, अवसर देना की खुद में झांक कर हर दिन के उजाले को खुद तक ला सकूं,
हे रात्रि, नमन है तुझे जो जीव मात्र में नई ऊर्जा का संचार कर उसे नई सुबह में विचरने का अवसर देती हो।।