अधूरा
अकेलेपन में भी सुकून था पहले,
आज ज़रा खाली-खाली सा लगता है।
जो वक्त तुझसे बातों में निकलता था पहले,
आज ज़रा सूना-सूना सा लगता है।
तुझसे मिलना और बिछड़ना, ये तो तय था पहले से,
पर अब न चाहकर भी अधूरा-अधूरा सा लगता है।
कहानी हमारी चाहकर भी,
हर महफ़िल में अधूरी अधूरी सी रही है।
सब तय होने के बाद भी,
आज तब भी कुछ बाकी बाकी सा लगता है।
© Sudeb
आज ज़रा खाली-खाली सा लगता है।
जो वक्त तुझसे बातों में निकलता था पहले,
आज ज़रा सूना-सूना सा लगता है।
तुझसे मिलना और बिछड़ना, ये तो तय था पहले से,
पर अब न चाहकर भी अधूरा-अधूरा सा लगता है।
कहानी हमारी चाहकर भी,
हर महफ़िल में अधूरी अधूरी सी रही है।
सब तय होने के बाद भी,
आज तब भी कुछ बाकी बाकी सा लगता है।
© Sudeb