सच का ताप, तुझ पे हिसाब
जो क्लाइमेट बचाने की बात करे, असल में सच्चाई पलटी है,
धरती को नहीं, खुद को बचा, ये तेरी मजबूरी है।
40°C कुछ भी नहीं, लावा के समंदर इसने झेले हैं,
तू चीखेगा जब, आंधियों में खुद को तिनके सा खेले हैं।
धरती ने देखे हैं तेरे सपनों से बड़े नज़ारे,
तू लड़ नहीं पाएगा, यहां तू होगा हारे।
वो फिर से उठेगी, पर तू मिट्टी में मिल जाएगा,
धरती की रफ्तार अटूट है, तू रुक जाएगा।
2004 से 4000°C, धरती ने सारा झेला ताप,
तेरी नासमझी का हिसाब, करेगी तुझ पर वार बेहिसाब।
तू अब भी अंधा है, पर तेरा वक्त भी आएगा,
डायनासोर जैसा अंजाम, तू भी मिट्टी में मिल जाएगा।
धरती नहीं झुकेगी,...
धरती को नहीं, खुद को बचा, ये तेरी मजबूरी है।
40°C कुछ भी नहीं, लावा के समंदर इसने झेले हैं,
तू चीखेगा जब, आंधियों में खुद को तिनके सा खेले हैं।
धरती ने देखे हैं तेरे सपनों से बड़े नज़ारे,
तू लड़ नहीं पाएगा, यहां तू होगा हारे।
वो फिर से उठेगी, पर तू मिट्टी में मिल जाएगा,
धरती की रफ्तार अटूट है, तू रुक जाएगा।
2004 से 4000°C, धरती ने सारा झेला ताप,
तेरी नासमझी का हिसाब, करेगी तुझ पर वार बेहिसाब।
तू अब भी अंधा है, पर तेरा वक्त भी आएगा,
डायनासोर जैसा अंजाम, तू भी मिट्टी में मिल जाएगा।
धरती नहीं झुकेगी,...