...

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खूब है।
फ़नाह होना ही है तो वो खूब है,
इश्क़ होना ही है तो वो खूब है।

उनकी मुस्कुराहट को इश्क़ में कैसे तब्दील करूँ ऐ आलम,
मरने के लिए उनकी यादें खूब है।

अब शिफ़ा की हसरत ठुकरा दी है,
उनका जिक्र मेरे लबों पे है।
कैसे रुख़सत करूँ उनकी यादों को मैं,
जो खयालों से हटा दू,
तो दिल में हैं।



© Medwickxxiv