...

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सावन
आया सावन लेके रिमझिम बरसात
तुम भी घर आ जाओ ले के प्यार
मै विनती करु तुम से बार बार
दे दे मुझे भी सजने संवरने का
पिया जी थोड़ा सा हक़ अधिकार
मैं तेरी हर बात मानूंगी
कभी ना नखरें दिखाऊंगी
तू जो कहेगा मैं वो सब करूंगी
तेरे चरण दबाऊंगी
तुझे पंखा झलूंगी
तेरे लिए भोजन पकाऊंगी
तुझे अपने हाथों से खिलाऊंगी
अब नहीं होता इंतजार
सावन के दिन बचे हैं दो चार
सखियों के बीच बनकर रह गई मैं मजाक
झूला भी झूली नहीं मैं अबकी बार
देख लिया बेदर्दी मैंने तेरा प्यार
झूठा है तेरा वादा झूठी है तेरी हर बात
जा ओ मैं नहीं करती तुम पर ऐतबार
चाहे लगा लो तुम अब कितनी गुहार..!!
किरण