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तुलनात्मक व्यथा
सरकारी काया को ईश्वर मान,
क्या- क्या न करते सम्मान में,
गैर-सरकारी की इज्जत ,ख़ाक समान ,
चली जाती गुमनाम में |

अगर नौकरी हुई सरकारी तो
बच जाती सबकी नाक ,
वरना गैर-सरकारी कानाफूसी का रूप लिए
फैलती हर कान में |

सरकारी संग वधू का जीवन
कटता हैं पलकों में ,
गैर -सरकारी इससे विपरीत ,
शायद बिठाते कब्रिस्तान में |
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