इंसान हूँ, हार कभी नहीं मानूँगा मैं
दूर सुरमई क्षितिज के पृष्ठभूमि में,
घोंसलों को लौटती परिंदों की क़तारें,
और धीरे-धीरे डूबता सूरज,
याद दिलाता है जीवन का,
एक और दिन हो गया समाप्त।
ठोकर खाऊँगा, गिरूँगा, उठूँगा...
घोंसलों को लौटती परिंदों की क़तारें,
और धीरे-धीरे डूबता सूरज,
याद दिलाता है जीवन का,
एक और दिन हो गया समाप्त।
ठोकर खाऊँगा, गिरूँगा, उठूँगा...