...

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वो,,,
वो मुस्कुराती थोड़ा कम थी
जाने क्यों उसकी ऑखे नम थी

आवाज़ में उसके बेचैनी थी
जाने क्यों घबराती थी

मैं सूनना चाहता था उसे
जाने क्यों वो नज़रे चुराती थी

शायद दर्द बहुत गहरा था
उसके विश्वास पे दर्द का पहरा था

खामोशी में भी वो शोर थी
उसकी मासूमियत पर दूनिया दंग थी

मिठी गज़ल की तरह आज भी जुबां पर है
बस ,,,जाने क्यों वो मुस्कुराती थोड़ा कम थी


© sunshine