...

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नीयत
महक रही साँसे और रूह वस्ल तुझसे जो हुआ
बरकरार रहे ये करता रहूँगा रब से बस ये दुआ

इंतज़ार के जो आलम गुजरें उससे शिकवा नहीं
तू मिल गया उसके एवज नहीं अब कोई भी गिला

ज़फर तक सफ़र ये रूकना बिल्कुल ही ना चाहिए
तुझ संग लगी जो प्रीत चलता ही रहे ये सिलसिला

नीयत में कोई दाग़ नहीं ना ही कोई फरेब दिल में
हमेशा खैरियत चाही हमसे अब तलक जो भी मिला

फ़िर तुझसे से तो नाता इश्क़ का जोड़ा है हमने
सनम तुझें तो भूले से भी हम कैसे भूलेंगे भला
© V K Jain