नीयत
महक रही साँसे और रूह वस्ल तुझसे जो हुआ
बरकरार रहे ये करता रहूँगा रब से बस ये दुआ
इंतज़ार के जो आलम गुजरें उससे शिकवा नहीं
तू मिल गया उसके एवज नहीं अब कोई भी गिला
ज़फर तक...
बरकरार रहे ये करता रहूँगा रब से बस ये दुआ
इंतज़ार के जो आलम गुजरें उससे शिकवा नहीं
तू मिल गया उसके एवज नहीं अब कोई भी गिला
ज़फर तक...