दर्शन को अंखियाँ प्यासी है
चितचोर साँवरिया कहाँ गये
दर्शन को अंखियाँ प्यासी है।
एक तरफ है शहर तुम्हारा
इस ओर नजरिया प्यासी है।
रसभरी तुम्हारी सारी बतिंयाँ
हर रोज मुझे तड़फाती हैं
रात भये सपनों में आकर
सितारों पर ले जाती हैं
यादों में तन मन भीग रहा
आँखों में मोती छलक रहे
इस सावन की मस्त झड़ी में
अरमान हमारे मचल रहे
साँसों की मणि माला में
सगरी उमरिया प्यासी है।
चितचोर साँवरिया कहाँ गये
दर्शन को अंखियाँ...
दर्शन को अंखियाँ प्यासी है।
एक तरफ है शहर तुम्हारा
इस ओर नजरिया प्यासी है।
रसभरी तुम्हारी सारी बतिंयाँ
हर रोज मुझे तड़फाती हैं
रात भये सपनों में आकर
सितारों पर ले जाती हैं
यादों में तन मन भीग रहा
आँखों में मोती छलक रहे
इस सावन की मस्त झड़ी में
अरमान हमारे मचल रहे
साँसों की मणि माला में
सगरी उमरिया प्यासी है।
चितचोर साँवरिया कहाँ गये
दर्शन को अंखियाँ...