...

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वह एक असंभव प्रेम गाथा में कौन है।।भाग३
और खूब है वो जज़बात मन में,
और क्योंकि वो मन नहीं मेरा,
वो सिर्फ मेरे सौदागर है,
और क्या खूब है खूशबू -
क्योंकि वो बू नहीं,
वो खूशबू है,
और क्या खूब है वो खूशबू,
जिसमें और क्या खूब है वो जज़बात मन में,
क्योंकि हां जज़बात नहीं है वो मेरे मन के,
वो कुछ पन्ने है मेरे दिल के अफसानों के,
मगर कमबख्त वो अफसाने और कौन है,
और क्या खूब है वो जज़बात मन के -
क्योंकि वो जज़बात मेरे मन के नहीं,
हमारे हृदय के दर्पण से उठे उन भाव के है,
और वो भाव ही है मेरे जिस्म है,
क्योंकि हां वो खूशबू मेरे उस माटी के जिस्म की नहीं -
बल्कि उस रूह में है जो आज मैं हूं,
तो कल तू होगा,
हां इश्क साथ में सोने में नहीं,
साथ होकर उसके उस मंजर में खोकर,
उसको पूरा कर जाने में है,
और वह कहती हैं कि आखिर
"वो कौन सा है मंजर"
#मंजर_को_पूरा_करने_मे_है।।
अब और क्या रह गया है बाकी,
वह कहती हैं"अरे ओ रे मेरे सौदागर "
© सावरिया