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!...कंदील ओ इश्क...!
टूटा हूं मैं इस कदर, कि जवाल आ जाए
शब भर दुआ किया अब जवाब आ जाए
अंधेरा है इन आंखों में, डरता है ये दिल मेरा
कंदील को लूं हाथ में, और मकाम आ जाए
सहरा के रेत पर, सुखी पड़ी थी एक कली
आग इस कदर लगी, अब बहार आ जाए
शम्मा को जलते हुए, इश्क ने फिर ये कहा
सबा है धुआं धुआं, दिल को करार आ जाए
इश्क से ही तो है, गुलशन में रंग मौजूद ये
ना हो गर ये इश्क तो, फिर अजाब आ जाए
_--12114
कंदील - मोमबत्ती
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