...

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वो अंजान सा बनता है
वो भरी महफ़िल में
अंजान सा बनता है
वो पहचानता है मुझे
पर गुमनाम सा बनता है

कभी उसकी नाराज़गी से
तो कभी उसके घमंड से
वो बेवफा सा लगता है
शायद नहीं नज़र आती उसे उसकी ये कमियां
इसलिए खुदको वफ़ा कहता है

कभी उससे दिल का हाल पूछू
तो इज़हार  करता है
अगर यही हाल मैं महफ़िल में पूछू
तो इनकार करता है

मैं सवालों के जाल में फसा रहता हूँ
और वो जवाबो से जाल बुनता रहता है
मैं बिन पतवार की कश्ती मैं रहता हूँ
जिसमे पार होने से ज्यादा डूबने का खतरा होता है

मैं उसे महसूस करता हूँ
और वो भरी महफ़िल में नजरअंदाज करता है
मैं खामोशी  समझाना चाहता हूँ
और वो शब्दों की इच्छा रखता है

वो भरी महफ़िल में
अंजान सा बनता है
वो पहचानता है मुझे
पर गुमनाम सा बनता है।

@WritterYuvraj #poem #hindipoem