तलाश ए मोहब्बत...
ढूंढने निकले हम अपनी मोहब्बत का आशियाना,
मगर हुआ क्या!,
मिला मुझे बेरहमों का नगर।
आसरा न किसी सहारे का न ही किनारे का,
बस जुस्तजू ए इश्क में खोए चलता गया,,
मगर कहूं क्या!,
मुकर्रर नसीब हुआ मुझे बस नफरती नजर।।
सोचा था मिल उससे इजहार ए इश्क करूंगा,
खोल पिटारा चाहतों का उसके सम्मुख कहूंगा,,
मगर...
मगर हुआ क्या!,
मिला मुझे बेरहमों का नगर।
आसरा न किसी सहारे का न ही किनारे का,
बस जुस्तजू ए इश्क में खोए चलता गया,,
मगर कहूं क्या!,
मुकर्रर नसीब हुआ मुझे बस नफरती नजर।।
सोचा था मिल उससे इजहार ए इश्क करूंगा,
खोल पिटारा चाहतों का उसके सम्मुख कहूंगा,,
मगर...