...

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कुछ अनकहे अल्फाज
इक शोर है मेरे अंदर और इक खामोशी मेरे बाहर,,
जो न जाने शाम होते ही कहां से आ जाती है!
जो मेरे अनकहे अल्फाजों को बाहर ले आती है और फिर खुद से ही खुद ही बाते करने लग जाती...