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नाकाम
नाकाम है जीवन,
बदनाम शहर है।
खामोश हूँ फ़िरभी,
बेज़ार पहर है।
बेकार का नाटक,
लगा है रहता।
बेकार में मैंभी,
चुप बैठा रहता।
लम्हा कोई हसीन,
याद करके।
सहमा हूँ जैसे, फ़िर
बात करके।
कठिन नही था,
जो मंज़र था मेरा।
कशिश समा में,
उडेले हुए सेहरा खड़ा था।
पर नाकाम था मैं,
जो अकेले पड़ा था।
© All Rights Reserved
बदनाम शहर है।
खामोश हूँ फ़िरभी,
बेज़ार पहर है।
बेकार का नाटक,
लगा है रहता।
बेकार में मैंभी,
चुप बैठा रहता।
लम्हा कोई हसीन,
याद करके।
सहमा हूँ जैसे, फ़िर
बात करके।
कठिन नही था,
जो मंज़र था मेरा।
कशिश समा में,
उडेले हुए सेहरा खड़ा था।
पर नाकाम था मैं,
जो अकेले पड़ा था।
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