...

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संघर्ष
हंसकर विदा हुई थी क्यौकी
वादे हजार किए गए थे..!!
हसीन जिन्दगी के चाहत में
उस दिन सोलह शृंगार किए गए थे..!!

प्रेम विवाह तो नहीं था पर
विवाह तक प्रेम तो हो ही गया था..!!
जागते आंखो से सपने देखती थी,
उसे अंदाजा भी नहीं था ,उसका नसीब सो गया था..!!

बारात आई , रस्में हुई थी,
साथ जन्मों की कसमें खाई गई थी..!!
सारे खोखले नियम लागू हुए,
जैसे ही वो घर लाई गई थी..!!


मोहब्बत जो बेशुमार दिखाई गई ,
वो हवा में चली थी.!!
अब ये घर पराया हुआ है कहते वो
रिश्ते भी बदल गए , जहा वो बचपन में पली थी..!!

सबको खुश रखना था ,
और काम भी सारे करने थे..!!
बस्स् शर्त इतनी सी थी,
की सारे आंसू छुपा कर रखने थे..!!

शेकडो उम्मीदें थी और उसे
सब पर खड़ा उतरना था..!!
सारे रिश्तों के वेदी पर उस
(बहु) को अकेले ही चलना था..!!

!! Nishu !!