ग़ज़ल - छोड़ आया हूँ कहीं...
छोड़ आया हूँ कहीं, गैरों में खुद की हँसी,
दफ़्न जो जीते जी रही ऐसी इक मैं ज़िंदगी।
छोड़ आया हूँ कहीं...
लफ़्ज़ मेरे ये सच्चाई बयां कर ना सके,
किस तरह मैंने गंवाई ये मेरी हर इक खुशी।
छोड़ आया हूँ कहीं...
हर...
दफ़्न जो जीते जी रही ऐसी इक मैं ज़िंदगी।
छोड़ आया हूँ कहीं...
लफ़्ज़ मेरे ये सच्चाई बयां कर ना सके,
किस तरह मैंने गंवाई ये मेरी हर इक खुशी।
छोड़ आया हूँ कहीं...
हर...