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दहेज़
दहेज़


पूरा करन के सात फेरन को
दुखिया दियहिं रोय।
हाथ जोड़ विनती करैं
विनती न सुनहिं कोय।
आँगन में रोवे बिटिया बेचारी
बाबा दुअरा बइठ के रोय।
छत गिरवी,ह खेत बिकायौ
करजा सर रक्खा होय।
पगड़ी उतार भैया, पैर पखारैं
ह्रदय पसीज ना पाय।
दहेज़ लोभी समधी जी क
न कछु सुनलै क चाह।
बरात लौटी बिन दुलहिंन के,
दूल्हा वचन से गयौ है डोल।
शादी से पहिले कहने,
बस लड़की दीजौ,
न कौनो चीज़ के मोह।