...

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वक्त
वक्त जैसा बन कर गुजर गया मैं उसकी जिंदगी से
दुबारा पाना चाहा उसने मुझे वक्त कहा वापस आता है

दिन के उजाले में करते हो चांद की तमन्ना अजीब हो
दिन में चमकता चांद कहा नजर आता है

उसकी हसरत थी देखे बैठ कर जगमगाते सितारे
आसमान पर चढ़ी है बादल की चादर सितारे कैसे दिखे समझ नही आता है

रास्ते बहुत अंधेरे थे मेरी राहा के
एक जुगनू की तलाश कर उसके पीछे चलता रहा मेरा मकान कहा है नजर नहीं आता है

बहुत आगे निकल आया हु इस सफर में मैं
कहा मेरा ठिकाना होगा कुछ समझ नहीं आता है

कैसे किसी गैर को बना लूं अपना साथी मैं इस सफर पर
बीच राहा में छोड़ देगा मेरा साथ कैसे करू उस अजनबी पर यक़ीन समझ नही आता है ।