रश्म-ए-दहेज़..
रश्म- ए- दहेज बनाया है जमाना ने क्यों ना,
अवाज उठाकर इसे जड़ से मिटाया जाए!
क्यों पिता अपनी बेटी को देखकर सहम सा
जाता इस डर को दिल से भूलाया जाए!
पिता अपने जीवन की कमाई बेटी की शादी,
में लूटा देता इस प्रथा को हटाया जाए!
दहेज की आग में कितने ही घर की तुलसी,
आग में जल जाती, कुप्रथा को जलाया जाए!
दो जोड़ी कपडे...
अवाज उठाकर इसे जड़ से मिटाया जाए!
क्यों पिता अपनी बेटी को देखकर सहम सा
जाता इस डर को दिल से भूलाया जाए!
पिता अपने जीवन की कमाई बेटी की शादी,
में लूटा देता इस प्रथा को हटाया जाए!
दहेज की आग में कितने ही घर की तुलसी,
आग में जल जाती, कुप्रथा को जलाया जाए!
दो जोड़ी कपडे...