एक बहुआयामी गाथा भाग4
हर तरफ विध्वंश व स्वार्थ -
से ग्रस्त योनि का मेला है,
इसलिए हर विध्वंस इच्छा व स्वार्थ से ग्रस्त व
हारकर आता है तब तुझे मेरे ही चौखट पर आना चाहें तूं कोई भी हो मै ही सिर्फ तेरी बुझती हुई दीप एकमात्र आखिरी मन्तव्य इच्छा व स्वार्थ को
अनन्त व असंभव तक चलाने में मैं ही हूं जो वो आखिरी वो विकल्प इसलिए मैं किसी कि ना होकर सबकी ख्वाइश हूं ।सब मेरे आगोश में आने को मरते हैं ।। इसलिए मैं निर्भय होकर चलती हूं...
से ग्रस्त योनि का मेला है,
इसलिए हर विध्वंस इच्छा व स्वार्थ से ग्रस्त व
हारकर आता है तब तुझे मेरे ही चौखट पर आना चाहें तूं कोई भी हो मै ही सिर्फ तेरी बुझती हुई दीप एकमात्र आखिरी मन्तव्य इच्छा व स्वार्थ को
अनन्त व असंभव तक चलाने में मैं ही हूं जो वो आखिरी वो विकल्प इसलिए मैं किसी कि ना होकर सबकी ख्वाइश हूं ।सब मेरे आगोश में आने को मरते हैं ।। इसलिए मैं निर्भय होकर चलती हूं...