चांद और बातें
आज फिर चांद का दीदार हुआ
रोशनी के तले फिर से आंखें चार हुआ
बोला मुझसे हंस कर की यार क्यों आधी रात यूं तन्हा बैठा है
क्या है जो तुझे यूं सता रहा
मैंने फरमाया चांद से है कोई जो मेरे दिल में बैठा है
है दिल के बड़े करीब जो अब दूर कहीं रूठा...
रोशनी के तले फिर से आंखें चार हुआ
बोला मुझसे हंस कर की यार क्यों आधी रात यूं तन्हा बैठा है
क्या है जो तुझे यूं सता रहा
मैंने फरमाया चांद से है कोई जो मेरे दिल में बैठा है
है दिल के बड़े करीब जो अब दूर कहीं रूठा...