...

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जुनून

तड़प दिले दिलदार की, ना तेरी थी ना मेरी थी,
मगर खूबसूरत और यादगार थी।
अश्कों में भीगोकर राते गुजारी हमने।
इसमें फतह जुनूनी मोहब्बत-ए-खुमार की थी।
चाहत साथ रहने की थी, आवाज उठाई,
दबाई गई वो आवाज, इन्सानियत-ए-हार थी।
गुज़रे वक्त में ऐतबार ना रहा तुम्हारा हमसे,
मगर ये हार न तेरी थी ना मेरी थी।
वक्त-ए-बहाव के खिलाफ,
हम दोनों की जिद प्यार थी।।


© शिवाजी