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सावन...!
तन भीगे प्रिय
मन भीगे,
देख देख... हरा सावन
भीगे...!
प्रेम की पड़ी
फुहार जो अब
द्वार... देहरी...
उर-आंगन भीगे!!
मिट्टी की खुशबू में
सन कर...
पीय.. पीय बोले
मन पपीहा...
डूब प्रेम में
संग मोरनी
उस का,
साजन भीगे...
सखी,तन भीगे
मन भीगे,
देख देख... हरा सावन
भीगे...!
मन भीगे,
देख देख... हरा सावन
भीगे...!
प्रेम की पड़ी
फुहार जो अब
द्वार... देहरी...
उर-आंगन भीगे!!
मिट्टी की खुशबू में
सन कर...
पीय.. पीय बोले
मन पपीहा...
डूब प्रेम में
संग मोरनी
उस का,
साजन भीगे...
सखी,तन भीगे
मन भीगे,
देख देख... हरा सावन
भीगे...!
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