...

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उलझन
अपने घर में रहते हुए भी
कुछ पराया-सा लग रहा है
ये दुनिया इतनी बडी होकर भी
अकेला-सा लग रहा है।


माना हमने भी जालिम है दुनिया
हमें इतने बंधनो में जखड रखा है
हम ही थे वो जिसने दुनिया के
रिश्तों को संभाल रखा है।


यहा तो हर दिन रिश्ते ..
निलाम हो रहे है...
पर हम है की मर्यादा के नाम पर
खोखले रिश्तों में भी उम्मीद तलाश रहे है।

"अब ये उलझन बोझ बन रही है दिल पर
जाने क्या असर होगा इसका जमानेपर"