...

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छोर
नदी के दो छोर,
कुछ सिखाते हैं,
अपनी कहानी वो सुनाते हैं,
क्या मिलन का भी आयेगा दौर,
नदी के दो छोर |
अहम में पडे़ बहते हैं,
कहाँ वो किसी से कुछ कहते हैं,
बहाव तेज हुई,
दूरी बढ़ जाती है,
फिक्र कहाँ उनको किसी का,
न इंतजार में कोई और,
नदी के दो छोर |
मिलने के भी अपने जतन हैं,
परिवर्तन भी प्रकृति का नियम है,
कौन रोकता है,
तुम्हें संकरा होने से,
थोड़ा तुम लगाओ अपना जोर,
तब देखना कैसे मिलते हैं,
नदी के दो छोर |

© देवेश शुक्ला